गुरुवार, 19 सितंबर 2013

मिट जाएँ इस बहते स्वर में

कविताएँ क्या हैं??
महज शब्दों का एक जोड़ तोड़
भावों को लयबद्ध करने की कोशिश
या अपने दिल को, बिना कुछ कहे ही
सब बयां कर, हल्का कर लेने का एहसास!

भावनाएं दिल से निकलती हैं या यह दिल
ही भावनाओं का कोई जोड़ है??

अगर भावनाएं दिल से निकलती हों तो
रुकें और जरा हम विचार करें की
पत्थरों से निकलता ये निर्झर कहीं सुख
न जाए हमें ज्यों का त्यों छोड़कर

और अगर दिल ही भावनाओं का बना हो तो
फिर भला इसे कौन जोड़े, कौन तोड़े!

बहती रहे यह बिना किसी लय, बिना  नियमों के
जैसे सदियों से बहता आया है ये अनंत!
मुझे लगता है जहाँ कवितायेँ हैं वहाँ मैं नहीं
और जहाँ मैं हूँ, ये जोड़-तोड़ है, वहाँ कवितायेँ नहीं.